Diya Jethwani

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लेखनी प्रतियोगिता -08-Apr-2023.... वक्त...

हैलो समीर बेटा.... 


हां बाऊजी.... बोलिए... ऐसा भी क्या हो गया जो बार बार फोन लगा रहें हैं...। आपसे कितनी बार कहा हैं अगर फोन नहीं उठाता तो समझ जाइयेगा की मीटिंग में हूँ....। बोलिए अभी कौनसी विपदा आ गई थीं ऐसी..। 
समीर ने गुस्से से कहा..। 

बेटा.... तुम्हारी माँ परलोक सिधार गई हैं...। कल से उसकी तबियत खराब थीं.... इसलिए तुम्हें बार बार फोन कर रहा था... पर.... 

हां हां ठीक हैं.... सुन लिया मैंने....। लेकिन अब मुझे कहां से टिकट मिलेगी....। मेरा अभी तो आना बहुत मुश्किल हैं..। मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ.... अंतिम संस्कार तक तो नहीं आ पाऊंगा.... बैठक तक आ जाऊंगा.... आप बड़े भाई को फोन कर दो ..। 


उसको भी किया फोन.... वो परिवार के साथ छुट्टियां मनाने बाहर गया हैं... वो भी नहीं आ पाएगा..। 

हां तो छोटा हैं ना.... अभी रखता हूँ मेरी एक ओर मिटिंग हैं...। 


इससे पहले की कैलाशनाथ कुछ ओर कहता सामने से फोन कट हो गया..। 


अपना सा मुंह लेकर कैलाशनाथ पंडित से बोले :- बड़ी अभागन हैं मेरी पत्नी... तीन तीन बेटों के होतें हुए भी उसे कंधा देने पड़ौसी आएंगे....। घबरा मत सरला.... तेरे लिए मैं अकेला भी काफीं हूँ..। मैं दूंगा तुझे कंधा..। तेरे तीनों बेटों के पास वक्त नहीं हैं....। 
कैलाशनाथ रोते रोते बोले :- कितना फख्र था तुझे अपने बेटों पर.... बार बार बोलतीं थीं.... मरुंगी तो मेरे चारों कंधे देने वाले होंगे... लेकिन देख तेरे बेटों के पास तुझे कंधा देना तो दूर तेरे अंतिम दर्शन का भी समय नहीं हैं...। 



रोते बिलखते... कैलाशनाथ ने अपनी पत्नी का दाह संस्कार किया...। 
उस वक्त उनके कुलगुरु के कहने पर एक परम्परा उनके परिवार में थीं.... की मरने वाले व्यक्ति के करीबियों को बैठक पूर्ण होने पर किसी एक वस्तु का त्याग करना होता हैं...। 

बैठक पर पंडित के द्वारा सभी कार्य विधी विधान से करवा कर उस परम्परा का वक्त आया... । पंडित ने बड़े बेटे से कहा :- कहिये पुत्र...आप किस वस्तु का त्याग कर रहें हैं..? 

पंडित जी मैं बैंगनी रंग का त्याग करता हूँ.... मैं कभी भी बैंगनी रंग के कपड़े नहीं पहनूंगा...। 

ये सुनकर सभी ने उसकी तारीफों के पुल बांधे....। लेकिन उसके पिताजी अच्छे से जानते थे की वो एक बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी के बड़े पद पर कार्यरत हैं... जहाँ शायद ही कभी उसे ऐसे गहरे रंग के कपड़े पहनने को मिलते हो...। लेकिन वो सिर्फ एक मुस्कुराहट के साथ खामोश रहकर दूसरे बेटे का जवाब सुनने का इंतजार करने लगे..। 


कुछ समय बाद पंडित ने मंझले बेटे से वहीं सवाल पूछा इस पर उसने कहा :- पंडित जी मैं आज के बाद गुड़ कभी नहीं खाऊंगा... मैं उसका त्याग करता हूँ...। 

ये सुनकर कैलाशनाथ मन में बोले.... वाह.... बेटा वाह.... गुड़ से तो तुझे वैसे ही एलर्जी होतीं हैं.... वो तो तु वैसे ही नहीं खाता... शाबाश बेटा... । 


अब बारी थीं तीसरे पुत्र की... पंडित जी ने जब वहीं सवाल सबसे छोटे बेटे से किया तो वो खामोश हो गया..। दोनों बड़े भाई उसका उपहास करने लगे... ये क्या छोड़ेगा.. इससे कुछ हुआ हैं क्या आज तक..। 

कहो बेटा.... तुम किस चीज़ का त्याग कर रहें हो...। पंडित ने दोबारा सवाल किया..। 

छोटे बेटे की आंखों में आंसूओ की धार बहनें लगी वो रोते रोते बोला :- मैं.... मैं आज से अपने रोज़मर्रा के काम से कुछ काम का त्याग करता हूँ...उस काम में लगने वाला वक्त मैं सिर्फ ओर सिर्फ अपने बाऊजी के साथ बिताऊंगा.... मैं अपने बाऊजी को अपने साथ रखूंगा.. उनका ख्याल रखूंगा... उनकी हर जिम्मेदारी उठाऊंगा.. मैं इन्हें वो वक्त दूंगा जो मैं माँ को नहीं दे पाया...। अपने परिवार और अपने काम को देने वाले वक्त में से मैं हर दिन कुछ वक्त निकालकर इनके साथ रहूंगा...। 


ये सुनकर कैलाशनाथ उसके पास आया ओर उसे सीने से लगाकर बोले :- यहीं असली त्याग हैं.... यहीं असली त्याग हैं....। 




बात बहुत छोटी सी हैं लेकिन सच हैं की हम अक्सर ऐसा करते हैं... जब इंसान चला जाता हैं... उसके बाद पछताते हैं... जीते जी हम उनकी कदर नहीं करते... उनको समय नहीं देते...। 
कहते हैं :- कुछ वक्त बीता लिया करो अपनों के साथ... वरना वक्त बीत जाएगा.. अपने छुट जाएंगे..। 
अपने कीमती समय में से कुछ वक्त घर के बुजुर्गों के लिए निकाल लिया करो... क्योंकि जब आपके पास समय होगा तब वो नहीं होंगे...। 



कुछ पल बैठा करो... बुजुर्गों के साथ.. 
हर चीज़ गुगल पर नहीं मिलती..।। 

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9 Comments

madhura

11-Apr-2023 04:02 PM

very nice

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Rakesh rakesh

09-Apr-2023 03:43 PM

आपने बिल्कुल सही लिखा है बुजुर्गों के जाने के बाद पछताने से अच्छा है कि हम उन्हें समय दें। 🙏🌹🌸🌷🌻🌟

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Gunjan Kamal

09-Apr-2023 12:53 PM

बेहतरीन प्रस्तुति

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